मैंने कार रोकी और पूछा, ‘‘कौन हो और इतनी सर्दी में यहां कोने में अकेले क्यों बैठे हो?
वह पहले घबराया, फिर बोला, ‘‘मेरा नाम परताप है. यहां फैक्ट्री के ठेकेदार के साथ मज़दूरी करता हूं. आज काम में देरी हो गई और आखिरी बस छूट गई, अब गाँव जाने का कोई साधन नहीं है.“ मैं उसे अपने घर ले गया. रास्ते में पूछा, ‘‘कितनी पढ़ाई की है?प्रताप बोला, ‘‘दसवीं पास हूँ.“ मैंने उसे राय दी कि मेहनत करो, कोई अच्छा काम मिल सकता है, और नए हुनर सीखो. वह एक दिन बाद फिर मिला, बोला, ‘‘साहब अगर सिक्योर में नौकरी मिल जाए तो और मेहनत करूंगा“. किस्मत से उन दिनों भर्तियां हो रही थी और प्रताप को नौकरी मिल गई पिओन के पद पर.
देखते देखते प्रताप की मेहनत रंग लाई.
नौकरी मुझे विलायत ले गई. जब भी मैं उदयपुर आता, प्रताप को ना जाने कैसे पता लग जाता. वह मुझसे मिलने आता. बोलता ज्यादा कुछ नहीं था.
उसकी आंखों में चमक होती थी. एक दिन उसे स्टोर्स में कम्प्यूटर पर काम करते देख मेरा सीना गर्व से फूल गया. वह सच्चा सेम्साईट था.
प्रताप की असामयिक मृत्यु से हम सभी शोक ग्रसित हुए. यह कहानी प्रताप को मेरी श्रृद्धांजलि है और उसके कुछ कर गुजरने के जज़्बे को मेरा सलाम.